शिशोदा गांव: इतिहास, संस्कृति और वर्तमान स्थिति

शिशोदा गांव: इतिहास, संस्कृति और वर्तमान स्थिति

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शिशोदा, जो महाराणा प्रताप की रणभूमि हल्दीघाटी से लगभग 30 किलोमीटर उत्तर और श्रीनाथजी की पावन नगरी नाथद्वारा से 20 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है, एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गांव है। इस गांव का इतिहास मेवाड़ राजवंश से जुड़ा हुआ है और यह क्षेत्र प्राचीन समय से शाही परिवारों और उनकी वीरता के कारण प्रसिद्ध रहा है।

इतिहास

शिशोदा गांव का इतिहास मेवाड़ के राजवंश से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यह गांव भगवान सूर्य की 63वीं पीढ़ी में भगवान रामचन्द्रजी के पुत्र कुश से संबंधित है। कुश की 59वीं पीढ़ी में राजा सुमित्र हुए, जिनके वंशज विजयभूत ने अयोध्या से दक्षिण भारत में विजय प्राप्त की। इसके बाद शत्रुओं के आक्रमण के कारण वल्लभीपुर का पतन हुआ और मेवाड़ में रानी पुष्पावती और उनके पुत्र गुहदत्त गुहिल का आगमन हुआ, जिन्होंने मेवाड़ राजवंश की नींव रखी।

राजा गुहिल के बाद 33वीं पीढ़ी में राजा कर्णसिंह के समय शिशोदा पर राव रोहितास्व भील का शासन था। राव रोहितास्व को पराजित कर शिशोदा पर राहप ने शासन किया। शिशोदा के शासक राणा शब्द से जुड़े, और बाद में मेवाड़ के शासक महाराणा कहलाए। राणा राहप ने सरसलजी पालीवाल को पुरोहित नियुक्त किया और बायण माता की पूजा स्थल की स्थापना की।

वर्तमान

शिशोदा गांव में आज भी विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं, जिनमें ब्राह्मण, राजपूत, जैन, सोनी, सुथार, लुहार, रेबारी, कुम्हार, नाई, दर्जी, तेली, भील, बलाई और हरिजन जातियां शामिल हैं। यह गांव पंचायती राज के अंतर्गत आता है और यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि और पारंपरिक व्यवसायों में लगे हुए हैं।

गांव का विस्तार विभिन्न भागलों और ढाणियों में हुआ है, जिनमें खरवडो की भागल, भाटडा की भागल, मोकेला, हीम की भागल, गरडा की भागल, मेडी वाली भागल, तलायां की भागल, आदि शामिल हैं। इन भागलों के माध्यम से यह गांव सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक केंद्र बन चुका है।

आध्यात्मिक महत्व

गांव में बिराजित खेतपाल बावजी का मंदिर है, जिसकी महिमा व्यापक रूप से प्रसिद्ध है। यहां रविवार के दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है, और लोग यहां पूजा-अर्चना करने आते हैं।

कृषि और पशुपालन

गांव में मुख्यत: मक्का और गेहूं की फसलें उगाई जाती हैं, जबकि ग्वार, तिल्ली, सरसों, मूंग, चमला, तारामीरा आदि भी उगाए जाते हैं। मसालों में प्याज और लहसुन की पैदावार भी होती है। पशुधन के रूप में गाय, भैंस, बकरी और बैल पाले जाते हैं, जो खेती के लिए आवश्यक हैं।

सुविधाएं और शिक्षा

गांव में पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था है, और चिकलवास तालाब परियोजना से जुड़ने के बाद पानी की उपलब्धता में सुधार हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में उच्च माध्यमिक विद्यालय, कन्या विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय, आंगनवाड़ी केंद्र और राजीव गांधी पाठशाला जैसी सुविधाएं हैं। स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक औषधालय भी उपलब्ध है।

समाज और रोजगार

कुछ लोग व्यवसाय और रोजगार के लिए शहरों में गए हैं, खासकर जैन समुदाय के लोग। अन्य लोग कृषि और मजदूरी के कार्य में लगे हुए हैं, और कुछ पारंपरिक व्यवसाय जैसे सोनी, दर्जी, नाई, कुम्हार, सुथार और लुहार भी यहां किए जाते हैं।

मनोरंजन और संस्कृति

गांव में गवरी, गैर नृत्य, गरबा, भजन मंडली आदि सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन होता है। इसके अलावा, टेलीविजन और मोबाइल का भी यहां प्रचलन बढ़ गया है, जो मनोरंजन का मुख्य स्रोत बन गया है।

निष्कर्ष

शिशोदा गांव का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसे राजस्थान के महत्वपूर्ण गांवों में शुमार करता है। यहां के लोग कृषि, पशुपालन और पारंपरिक व्यवसायों में लगे हुए हैं, और इस गांव की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिला हुआ है।

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