जयपुर। महिला की चुप्पी को तोड़ते हुए पुलिस ने संवेदनशील कार्रवाई करते हुए एक गुप्त और सशक्त एक्शन प्लान बनाया। डीसीपी वेस्ट अमित कुमार ने बताया कि पीड़िता (महिला) समाज और अपने पति के डर से एफआईआर दर्ज कराने से इनकार कर रही थी, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने CI चित्रकूट अंतिम शर्मा को निर्देश दिए कि महिला और उसकी नाबालिग बच्चियों की काउंसलिंग एक एनजीओ की उपस्थिति में करवाई जाए।
इस काउंसलिंग की हिडन कैमरे से वीडियोग्राफी कराई गई ताकि कानूनी सबूत इकट्ठा किए जा सकें। एनजीओ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट और काउंसलिंग के दौरान सामने आए तथ्यों में दुष्कर्म के पुख्ता संकेत मिले।
22 जून को दर्ज हुई एफआईआर
सबूत मजबूत होते ही 22 जून को सीआई चित्रकूट ने सदर थाने में आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। इसके बाद इस गंभीर प्रकरण की जांच एडिशनल डीसीपी SIUCAW (Special Investigation Unit – Crime Against Women) सुलेश चौधरी को सौंपी गई।
मेडिकल और बयान से हुआ खुलासा
पुलिस ने एनजीओ, सीआई चित्रकूट, पीड़ित बच्चियों और उनकी मां के मजिस्ट्रेट के सामने बयान कराए। इसके बाद एक विशेष मेडिकल बोर्ड की मदद से बच्चियों का मेडिकल परीक्षण करवाया गया।
मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि होने के बाद आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। अब तक की जांच में सामने आया है कि आरोपी कई वर्षों से अपनी ही नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म कर रहा था।
संवेदनशीलता और रणनीति से हुई कार्रवाई
इस पूरे मामले में जयपुर पुलिस की रणनीतिक और संवेदनशील कार्रवाई की सराहना की जा रही है। महिला की चुप्पी और सामाजिक दबाव के बावजूद पुलिस ने कानूनी रूप से मजबूत ढंग से काम किया और बच्चियों को न्याय दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया।
निष्कर्ष:
इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। जयपुर पुलिस ने न सिर्फ चुप्पी तोड़ी, बल्कि एनजीओ की मदद, हिडन कैमरा वीडियोग्राफी, मजिस्ट्रेट के सामने बयान और मेडिकल रिपोर्ट जैसे कानूनी आधारों के जरिए आरोपी को पकड़ कर नाबालिग बच्चियों को न्याय दिलाने का कार्य किया। यह एक मिसाल है कि अगर संवेदनशीलता और सख्ती के साथ काम किया जाए तो सामाजिक दबाव में दबे अपराध भी सामने लाए जा सकते हैं।