राजसमंद, राजस्थान का इतिहास

राजसमंद, राजस्थान का इतिहास

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राजस्थान के हृदय में बसा राजसमंद जिला अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास और वीरता का प्रतीक है। राजसमंद का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध राजसमंद झील के कारण पड़ा, जिसे महाराणा राज सिंह प्रथम ने 1662 ई. में बनवाया था। यह झील न केवल जल संग्रहण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि इसके किनारे पर बनी कीर्ति स्तंभ और शिलालेख भी इतिहास के अनमोल पन्ने समेटे हुए हैं।

प्राचीन इतिहास

राजसमंद क्षेत्र का इतिहास प्राचीन मेवाड़ राज्य से जुड़ा हुआ है। इसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है, जब इसे अर्जुन ने अपने तीरों से सींचा था। यह क्षेत्र विभिन्न राजवंशों के अधीन रहा, जिनमें मौर्य, गुर्जर-प्रतिहार, परमार और सिसोदिया प्रमुख थे।

मध्यकालीन इतिहास

मध्यकालीन इतिहास में राजसमंद का महत्व तब बढ़ा जब इसे मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासनकाल में संरक्षित और विकसित किया गया। 17वीं सदी में महाराणा राज सिंह ने यहां राजसमंद झील का निर्माण करवाया। यह झील अकाल राहत कार्य के तहत बनवाई गई थी और इसमें इस्तेमाल की गई स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग अद्भुत है। झील के किनारे बने “नौचौकी” घाट और विशाल संगमरमर के शिलालेख इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत को उजागर करते हैं।

राजसमंद झील और इसका महत्व

राजसमंद झील भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है। यह झील मेवाड़ के शासकों की जल संरक्षण और प्रबंधन के प्रति दूरदर्शिता का प्रतीक है। झील के किनारों पर 27 संगमरमर की पट्टियों पर मेवाड़ का इतिहास, राजवंश और उनकी उपलब्धियों को उकेरा गया है। इसे “राज प्रशस्ति” कहा जाता है और यह विश्व का सबसे लंबा शिलालेख है।

आज का राजसमंद

आधुनिक काल में राजसमंद एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो अपने झील, कुंभलगढ़ किला, हल्दीघाटी, चारभुजा मंदिर, और देवेरी गांव के लिए प्रसिद्ध है। यह जिला संगमरमर उद्योग के लिए भी जाना जाता है और इसे “संगमरमर नगरी” कहा जाता है।

राजसमंद का इतिहास न केवल मेवाड़ की वीरता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि यह क्षेत्र आज भी राजस्थान की गौरवशाली परंपराओं और विरासत को सजीव बनाए हुए है।

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